सेहत: इन दिनों कौन क्या खाएगा यह चीज ज्यादातर सोशल मीडिया से जुड़ी होती है। सोशल मीडिया के ट्रैंड्स जैसे कि मटका चाय, चिया सीड्स, बटर बोर्ड्स या फिर डाल्गोना कॉफी यह सब ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि कैसे सोशल मीडिया एक फूड गाइड आलोचक और कई बार न्यूट्रीशिएंट एक्सपर्ट बन चुका है। यदि कोई चीज इंस्टाग्राम पर अच्छी दिखे तो लोग उसको चखना चाहेंगे। भले ही वो उनको अच्छी न लगे। इन्हीं सब के कारण सेहत पर खतरा मंडराने लगता है।
ऐसे होता है असर
एक्सपर्ट डाइटिशियन के अनुसार, सोशल मीडिया खासतौर पर इंस्टाग्राम खाने-पीने की आदतों पर बहुत असर डालता है। अब खाने की चीजें सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि उनकी सुंदरता और कहानी पर भी निर्भर करती है। फूडमो यानी की खाने के ट्रैंड्स छूट न जाएं इसका कुछ लोगों पर सामाजिक दबाव बन चुका है जो लोग इन ट्रैंड्स को फॉलो करने पर मजबूर हैं वो तो इसको कर लेते हैं।
इन ट्रैंड्स को अपनाने से जहां पर नए फूड आइडियाज और जागरुकता बढ़ी है वहीं इसके कुछ नेगेटिव पहलू भी हैं। गलत जानकारी, खराब खाने-पीने की आदतें, पोषण की कमी, अव्यवस्थित खान-पान जैसी समस्याएं बढ़ना। डॉक्टर्स की मानें तो युवाओं में सीने में जलन, पेट फूलना और कब्ज जैसी दिक्कतें हो रही हैं जो पहले कम थी पर अब के समय में ज्यादा हो रही हैं। इसका कारण है कि लोगों को पोषण की सही जानकारी नहीं होती। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि अपने फॉलो किए जाने वाले व्यक्ति की खाने की आदतों से प्रभावित होकर वही चीजें लोग खाने लग जाते हैं।
कैलोरी से ज्यादा जरुरी है कंटेंट
सोशल मीडिया पर खाने-पीने की चीजें अब सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि उनकी एस्टेटिक्स और पहचान बनाने की कहानी के लिए भी जरुरी हो चुकी हैं। इसमें फूडमो फैक्टर जुड़ गया है। यह आपको सांस्कृतिक बातचीत का हिस्सा बनाता है। सोशल मीडिया पर दिखने वाले ट्रैंड्स ने फूड को सिर्फ पेट भरने से बदलकर पोषण देने और सोशल मीडिया फीड को बढ़ाने के बीच में एक थिन लाइन पर ला दिया है। इन ट्रैंड्स को बढ़ावा न्यू आइडियाज और अवेयरनेस ने दिया है। इनके कुछ नेगेटिव पॉइंट्स भी हैं जैसे गलत जानकारी, ज्यादा मात्रा में खाना, न्यूट्रिशनल इंबैलेंस और डिसऑर्डर इटिंग जैसी दिक्कतें भी शामिल हैं।
एक्सपर्ट्स की मानें तो आजकल यंग एडल्ट्स ऐसी हेल्थ प्रॉब्लम्स को ट्रीट कर रहे हैं जो पहले उनकी उम्र में कम थी जैसे कि क्रोनिट चेस्ट बर्न, ब्लोटिंग, कॉन्स्टिपेशन और अर्ली न्यूट्रिएंट डेफिशियेंसी। ये भी एक चिंता का विषय बन चुका है कि कई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स जिनके पास में फूड या न्यूट्रिशन से रिलेटेड कोई एक्सपर्ट नॉलेज नहीं होती वो भी ट्रैंड्स को ही प्रमोट करते हैं और उनके बताए गए फूड आइटम्स के रियल इफेक्ट्स को भी अच्छे से नहीं समझते।
आपको बता दें कि बर्मिंघम यूनिर्वसिटी की एक स्टडी से यह प्रूव हुआ है कि सोशल मीडिया यूजर्स किसी आदमी को फॉलो करते हैं। यदि वे इस चीज पर विश्वास करते हैं कि कोई स्पेशल फूड रेगुलरली खाता है तो वे भी उस फूड को कंजम्प्शन बढ़ा देते हैं। इसके अलावा फूड ब्लॉगर्स के अनुसार, इंफ्लुएंसर्स खाने के ट्रैंड्स सेट करने में भी खास रोल निभाते हैं। फूड व्लॉर्गस के अनुसार, इंफ्लुएंसर्स खाने के ट्रैंड्स सेट करने में खास रोल निभाते हैं।