कानपुरः यूपी के कानपुर जनपद के रावतपुर थाना क्षेत्र निवासी आयकर विभाग के अधिकारी विमलेश दीक्षित को जिंदा मानकर परिवार शव के साथ 17 महीनों तक रहा। 23 सितंबर 2022 को जब मामला सामने आया कि 17 महीने से उनके शव को रखकर पूरा परिवार उनका इलाज करने की कोशिश कर रहा था, हर कोई हैरान हो गया। इस दौरान उनके इलाज में परिजनों 30 लाख रुपए खर्च कर दिए। और यह सब किया गया इलाज के नाम पर।
अप्रैल 2021 में विमलेश की मृत्यु होने के बाद परिजन उन्हें घर लेकर लाए और धड़कन चलने की बात कहकर उनका अंतिम संस्कार नहीं किया। घर पर ही इलाज शुरु कर दिया गया। 4 दिनों में ही परिजनों ने ऑक्सीजन के लिए 9 लाख रुपए खर्च कर दिए। करोना काल के समय ऑक्सीजन सिलेंडर की किल्लत के चलते परिजनों ने एक-एक लाख रुपए के ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदे थे।
विमलेश के पिता ने बताया कि 22 अप्रैल 2021 के बाद जब उसे मृत बताया गया था, उसके बाद से डेढ़ माह तक बड़े-बड़े अस्पतालों, यहां तक कि लखनऊ के पीजीआई भी उन्हें लेकर गए, लेकिन कोरोना की वजह से अस्पताल में घुसने तक नहीं दिया गया। फिर कानपुर के ही कल्याणपुर और बर्रा स्थित निजी अस्पताल ने विमलेश के शव को भी भर्ती कर लिया और मोटी रकम वसूली।
विमलेश के परिजनों ने यह भी बताया कि कि 6 माह तक झोलाछाप डॉक्टर घर पर ही इलाज करता रहा। विमलेश को ग्लूकोज चढ़ता रहा। यहां तक कि रेमडेसीविर इंजेक्शन भी खरीद कर लगवाया और जब 6 महीने बाद विमलेश की नस न मिलने की वजह से उसने इलाज करने इनकार कर दिया। फिलहाल इस पूरे मामले में पुलिस कमिश्नर ने तीन सदस्यीय जांच टीम बैठा दी है। टीम यह जांच करेगी कि कैसे 17 महीने तक शव को घर में रखा गया? क्यों नहीं शव ख़राब हुआ और उसमे से बदबू आई? टीम यह भी जांच करेगी कि किस तरह से इलाज के नाम पर वसूली हुई।
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