नई दिल्ली: क्या मिडिल क्लास लोग कर्म खर्च कर रहे हैं? क्या उनके पास पैसा खत्म होता जा रहा है? ये हम नहीं बल्कि एक्सपर्ट्स ने ऐसी चेतावनी दी है जिसे सुनकर शायद आप भी सोच में पड़ जाएं। मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सौरभ मुखर्जी ने एक लंबे चौड़े ब्लॉग में यह बताया है कि भारतीय कॉर्पोरेट में मुनाफा लड़खड़ा रहा है।
इस संकट में अहम रोल मध्यम वर्ग निभा रहा है। उन्होंने कहा है कि दीवाली के बाद से भारतीय कंपनियों की इनकम ग्रोथ में भारी गिरावट दर्ज हुई है और इसका बड़ा कारण है खपत में आने वाली कमी। इसका एक अर्थ यह भी है कि मध्यम वर्ग के भारतीयों के पास में पैसे खत्म हो रहे हैं।
इस वजह से रुक रहा मिडिल क्लास का इंजन
सौरभ मुखर्जी के अनुसार, इस संकट के पीछे तीन बड़े कारण जिम्मेदार हैं। उनका कहना है कि सफेदपोश रोजगार के अवसरों में गिरावट, वास्तविक मजदूरी में कमी और एआई का बढ़ता दायरा, मध्यम वर्ग के इंजन को कमजोर करने में यह सब अहम रोल निभा रहे हैं। इससे लॉन्गटर्म से भारत के डेवलपेट को भी तेजी मिली है। उन्होंने अपने ब्लॉग में यह कहा है कि कंपनियों की खपत कम हो रही है ऐसा इसलिए है क्योंकि मिडिल क्लास लोगों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं।
मुखर्जी ने भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों का हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2024 में जी डीपी के हिस्से के तौर पर घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ चुकी है। यह आखिरी बार 1977 में देखने को मिली थी। उन्होंने कहा है कि मंदी हर जगह दिख रही है। खपत जीडीपी का 60% हिस्सा है। यह 2021-23 के बाद से कम हो गई है। बात SUV की करें या फिर घर या ट्रैवल की इसमें कभी तेज उछाल दिख रहा था तो अब इनकी डिमांड कम होती जा रही है। कॉर्पोरेट इनकम भी इसी ट्रैक पर चल रही है और निफ्टी पर लिस्टेड कंपनियों ने FY25 में सबसे तेज गिरावट दर्ज की है।
बढ़ रही है मुसीबत
अगला कारण विस्तार के साथ बताते हुए सौरभ मुखर्जी ने कहा है कि नौकरियां एक और कारण से भी दिक्कत कर रही हैं। आंकड़ें के अनुसार, साल 2020 से पहले एक दशक तक सफेदपोश नौकरियां हर छह साल में बढ़ जाती थी परंतु FY20 से यह ग्रोथ रेट कम होकर सालाना सिर्फ तीन फीसदी रह गई है। इसका अर्थ है कि अब नौकरियों को दोगुना होने में 24 साल लग जाएंगे। मिडिल क्लास की रीढ़ माने जाने रोजगार, आईटी, सॉफ्टवेयर और रिटेल भी स्थिर दिख रहे हैं।
उन्होंने ऑटोमेशन को इस गिरावट में तेजी का बड़ा कारण कहा है। एआई के विस्तार के साइड इफेक्ट्स को बताने के लिए उन्होंने टाटा ग्रूप की कंपनी टीसीएस का भी उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि टीसीएस सीईओ के. कृतिवासन ने जुलाई 2025 में एआई ग्रोथ के साथ कंपनी अपने कर्मचारियों की संख्या में 2% की कटौती की बात कर रही है।
कंपनियों की कमाई हो रही कम
कंपनियों की इनकम में आई कमी भी उतनी ही जिम्मेदारी है जितना के बाकी कारण। मुखर्जी का कहना है कि निफ्टी-50 कंपनियों पर किए गए विश्लेषण से यह पता चलता है कि बीते 8 सालों में कर्मचारियों का औसत वेतन महंगाई के साथ तालमेल बिठाने में विफल रहा है। 2016 से पहले के सालों में जब वेतन कम से कम बढ़ती लागत के बराबर होता था उस दौर की तुलना में आज के सफेदपोश कर्मचारी वास्तविक तौर पर गरीब दिख रहे हैं।
मुखर्जी का यह कहना है कि भारत के 4 करोड़ सफेदपोश पेशेवर जो अपने खर्च से करीबन 20 करोड़ नौकरियों का सृजन करते हैं। उनके लिए यह खतरे की घंटी है। उन्होंने चेतावनी भी दी है कि जब तक वेतन और रोजगार सृजन में सुधार नहीं होगा। भारत में मध्यम वर्ग की लंबे समय तक तंगी बनी रहेगी इससे उनकी आर्थिक गति पर भी असर पड़ेगा।