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भागवत कथा सुनने से अहंकार का होता है नाश: ठाकुर कृष्ण चंद्र शास्त्री

भागवत कथा सुनने से अहंकार का होता है नाश: ठाकुर कृष्ण चंद्र शास्त्री भागवत कथा सुनने से अहंकार का होता है नाश: ठाकुर कृष्ण चंद्र शास्त्री

संसार में कोई भी वस्तु भगवान से अलग नहीं : बाबा बाल जी 

बाबा बालजी स्वयं नारायण का अवतार लेकर आए हैं- हेमानंद जी

ऊना/सुशील पंडित : श्री राधा कृष्ण मंदिर कोटला कलां में राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी की अध्यक्षता में चल रहे विराट महासम्मेलन में आज ऊना को सचमुच संतों का मिलन देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जब डेरा बाबा रुद्रानंद आश्रम नारी के अधिष्ठाता बाबा सुग्रीवानंद जी महाराज के परम शिष्य श्री हेमानंद जी महाराज का आगमन हुआ। बाबा बालजी ने श्री राधा कृष्ण मंदिर पहुंचने पर श्री हेमानंद जी का भव्य स्वागत किया। दोनों संतों ने मिलकर व्यास पीठ पर विराजमान श्रीमद्भागवत व ठाकुर कृष्ण शास्त्री जी का आरती उतारकर पूजन किया। इस उपलक्ष पर बाबा बाल जी ने अपने संबोधन में भक्तों से कहा कि उन्हें अपने बच्चों को सही संस्कार देने चाहिए। संतों के आगमन से वह आश्रम पवित्र हो जाता है जहां संत पधारते हैं। 

श्रीमद् भागवत की चौथे दिन की कथा को आगे बढ़ाते हुए ठाकुर कृष्ण चंद्र शास्त्री जी ने राम जन्म एवं कृष्ण जन्म की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि कलयुग में भागवत की कथा सुनने मात्र से हर प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी जन्मों के पापों का नाश होता है। राम जन्म एवं कृष्ण जन्म व बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला। यह भी बताया कि 24 लाख योनियों में भटकने के पश्चात मानव शरीर की प्राप्ति होती है। जब-जब अत्याचार और अन्याय बढ़ता है तब तब भगवान का इस धराधाम पर अवतार होता है। भगवान का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है। जब रावण का अत्याचार बढ़ा तब राम अवतार हुआ। जब कंस ने सारी मर्यादाऐं तोड़ी तो भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। ठाकुर कृष्ण चंद्र शास्त्री जी ने कहा कि भागवत कथा एक ऐसी कथा है जिसे ग्रहण करने मात्र से ही मन को शांति मिलती है। भागवत कथा सुनने से अहंकार का नाश होता है। 

ठाकुर कृष्ण चंद्र शास्त्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के घरों से माखन चोरी की। इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है। दूध का सार तत्व माखन है। उन्होंने गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। भगवान हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है। कथा व्यास ने बताया कि वास्तविकता में श्रीकृष्ण केवल ग्वाल-बालों के सखा भर नहीं थे, बल्कि उन्हें दीक्षित करने वाले जगद्गुरु भी थे। श्रीकृष्ण ने उनकी आत्मा का जागरण किया और फिर आत्मिक स्तर पर स्थित रहकर सुंदर जीवन जीने का अनूठा पाठ पढ़ाया।

बाबा बाल जी आश्रम कोटला कलां में आज डेरा बाबा रुद्रा नंद से बाबा सुग्रीवा नंद जी के परम शिष्य हेमानंद जी भागवत कथा में विशेष रुप से पधारे। श्री राधा कृष्ण मंदिर पहुंचने पर मंदिर अधिष्ठाता राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी ने पूज्य हेमानंद जी का पुष्पमाला पहनाकर स्वागत किया। पूज्य श्री हेमानंद जी महाराज ने कहा कि हम परम भाग्यशाली हैं कि प्रतिवर्ष संत बाबा बालजी नारायण का अवतार लेकर आते हैं और इतना पुन्य आयोजन करवाते हैं। जो हमें जीवन कल्याण की शिक्षा देते हैं। हमें नहीं पता कि हमें कैसा जीवन जीना है लेकिन जब ऐसे संतों की संगत में आते हैं तब हमें पता चलता है कि जीवन कैसे जीना है। ऐसे संतों की महिमा गाने के लिए हमारे पास क्या स्वयं भगवान के पास भी शब्द नहीं होते। साक्षात ब्रह्मा, नारायण और शंकर भी जब संतों का महिमागान करने लगते हैं तब उनकी वाणी भी कुंठित हो जाती है। 

श्री हेमानंद जी ने कहा कि जब तक बच्चे संतों की शरण में नहीं जाते और जब तक ऐसे संतों के चरणों में हमारा मस्तक नहीं लगता तब तक पापों की मुक्ति नहीं होती। जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने से सोने का मल धुल जाता है और वह एकदम चमक जाता है, उसी प्रकार संतों के संपर्क में आने से पाप मिट जाते हैं और हमारे अंदर एक ऊर्जा आ जाती है। भक्त भी चमक जाते हैं। एक हाथ फूल को तोड़ता है और दूसरा उस फूल को अपने पास रखता है। मगर उस फूल की कृपा तो देखिए जिसने तोड़ा उसे भी सुगंधित कर दिया और जिसने पकड़ा उसे भी सुगंध से भर देता है। संत भी पुष्प की तरह होते हैं। ये चलते फिरते तीर्थ समान होते हैं। ऊना में ऐसे संत हैं जिनके स्थान पर श्री राम और श्री कृष्ण की कथाओं की नदियां बहती जा रही हैं। यहां अगर आ जाओगे तो तन और मन का मैल धुल जाएगा। अगर बाबा बाल जी न होते तो ऊना में सनातन धर्म शायद न बच पाता। बाबाजी ने हमारे धर्म को बचाया है। इन संतों की महिमा नहीं गाई जा सकती। ऊना की भूमि बाबा बाल जी जैसे संत को पाकर धन्य हो गई है।

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