नई दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आए दिन एक के बाद एक दावे कर रहे हैं। अब उन्होंने एक बार फिर यह दावा कर दिया है कि भारत ने रुस से तेल आयात में पूरी तरह से कटौती कर दी है। उन्होंने कहा कि भारत का ये कदम अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी की दिशा में बड़ा कदम है हालांकि भारत ने पहले भी ऐसे दावों को खारिज करते हुए यह साफ कर दिया है कि तेल खरीद का फैसला उसके राष्ट्रीय हितों पर आधारित है न कि किसी बाहरी दवाब पर।
रुस की अर्थव्यवस्था पर हुआ प्रहार
ट्रंप प्रशासन ने यह कहा है कि रुसी ऊर्जा क्षेत्र को युद्ध मशीन को फंड करने से रोकने के लिए इन कंपनियों पर आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इन प्रतिबंधों में शामिल है अमेरिका में रुस की दो कंपनियां रोसनेफ्ट और लुकोइल की संपत्तियों को फ्रीज करना, अमेरिकी नागरिकों को इनके साथ किसी भी वित्तीय लेन-देन से रोकना और वैश्विक साझेदार देशों से भी इनसे व्यापारिक दूरी बनाए रखने की अपील की है। यह कदम रुस की अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रहार है क्योंकि रोसनेफ्ट और लुकोईल रुस के कुल तेल निर्यात को लगभग 45% नियंत्रित करती है।
रुसी तेल पर भारत ने किया रुख
ट्रंप के दावे के तुरंत बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने एक बाऱ फिर से यह साफ कर दिया है कि भारत रुस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखेगा क्योंकि यह ऊर्जा और सस्ती आपूर्ति का जरुरी हिस्सा है। भारत का कहना है कि जब तक संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर कोई आधिकारिक प्रतिबंध नहीं लगता है तब तक कोई भी देश उसे किसी विशेष विक्रेता से तेल खरीदने से नहीं रोक सकता।
भारत के ऊर्जा मंत्रालय के अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हमारी प्राथमिकता है कि भारत को सस्ता और स्थिर तेल मिल पाए। हम अपने हितों से समझौता नहीं कर सकते। ट्रंप इससे पहले भी यह दावा कर चुके हैं कि भारत धीरे-धीरे रुस से तेल खरीद बंद कर देगा लेकिन भारत की खरीद के आंकड़े यह बताते हैं कि रुस अब भी भारत का सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता है। यह सऊदी अरब और इराक से भी आगे है।
चीन से व्यापार समझौते की उम्मीद
ट्रंप ने अपनी घोषणा के दौरान यह भी कह दिया है कि दक्षिण कोरिया में होने वाली चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात में एक पूर्ण व्यापार समझौते की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम फेंटेनाइल और कृषि व्यापार पर भी बात करेंगे। यह बहुत से अमेरिकियों की जान ले रहा है और यह चीन से आता है। यह बैठक उस समय पर हो रही है। जब अमेरिकी और चीन के बीच तकनीकी प्रतिबंध व्यापार संतुलन और कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला को लेकर तनाव चरम पर पहुंच चुका है।