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बेटियां किसी से कम नही , उड़ने दे उन्हें अपनी ऊँचाई की उड़ान

साधारण परिवार की रचना चौधरी ने डाक्टर बन स्व. पिता का सपना किया साकार

नालागढ़ के डाडी कानियां गांव की पहली महिला डाक्टर होने का मिला गौरव

बददी/ सचिन बैंसल : साधारण व आम परिवार की बेटियां भी बडा मुकाम छू सकती हैं है अगर उनको मौका मिले तो। नालागढ़ के निकट छोटे से गांव डाडी कानियां की बेटी ने मैडीकल के क्षेत्र में नाम कमाते हुए अपनी डाक्टरी की डिग्री हासिल की है। रचना चौधरी ने कठिन मेहनत से बैचलर आफ आर्युेवेदा मैडीसिन एंड सर्जरी की डिग्री हासिल की है। एक किसान और ट्रांसपोर्टर परिवार जिसमें बेटियों की पढ़ाई पर ज्यादा फोक्स नहीं होता और युवा होते ही उसको शादी के बंधन में बांध दिया जाता है से संबधित रचना ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पीरस्थान के निजी स्कूल से 10वीं पास की वहीं उसके बाद जमा दो की पढाई शिवालिक सांईस स्कूल से पास की।

रचना जो कि अपने पिता से बहुत ज्यादा अटैच थी जहां घर के हर कार्य में हाथ बंटाती थी वहीं बिना किसी टयूशन के बिना साधनों के पढ़ाई भी जारी रखी । उसके बाद रचना ने जब टैस्ट दिया तो उसका 80वां रैंक दिया और उसकी सिलेकशन शिवा आयुर्वेवेदिक मैडीकल कालेज चंादपुर जिला बिलासपुर के लिए हुआ। उसमें उसने साढे पांच साल की कडी मेहनत के बाद अपनी बीएएमएस की डिग्री हासिल की। रचना ने अपनी यह डिग्री अपने स्व पिता रोशन लाल को समर्पित की है जिनका सपना था कि उनकी बेटी उच्च पर पर जाए और गांव का नाम रोशन करे।

डिग्री प्राप्त करने के बाद रचना ने कहा कि वह साधनो के अभाव में इस मुकाम पर पहुंची है लेकिन इसके पीछे उनके स्व पिता की प्रेरणा व भाई का विक्रम सिंह का प्यार है। उन्होने कहा कि चूंकि डाक्टरी पेशा एक पवित्र और लोग इस पर भगवान जितना विश्वास करते हैं इसलिए वह जीवन में कभी भी मरीजों से खिलवाड नहीं करेंगी और न ही कभी रिश्वत लेगी। गौरतलब है कि कोविड से एक महीना पहले रचना के पिता का साया सिर से उठ गया और उसको बुरी तरह तोड दिया फिर भी इस बेटी ने जहां अपने को संभाला औरी पढ़ाई को जारी रखा। कोविड के दौरान कुछ समय रचना ने अपनी पढ़ाई घर से आनलाईन पूरी की और बाकी समय रोगियों की सेवा में लगाया और अपना खर्चा भी उठाया।

बेटियों को उडान उडनें दें: भाई

इस विषय में खुशी जाहिर करते हुए रचना के भाई विक्रम सिंह ने कहा कि बेटियां किसी से कम नहीं है और उनको अपने पंखों से उडान भरने देना चाहिए तभी बेटी है अनमोल का नारा सार्थक हो सकता है। उन्होने बताया कि उनका सपना है कि उनकी बहन अब मास्टर डिग्री एमडी करे जिसके लिए वह जी जान लगा देंगे। भाई ने कहा कि हमारे परिवार का 30-35 साल से ट्रकों का व्यवसाय रहा है और मैं खुद भी ट्रक चलाता हूं लेकिन यह देखा जाता है कि चूंकि हम महीना महीना बाहर रहते हैं और यह धारणा है कि हमारे बच्चे कुछ बडा नहीं कर सकते लेकिन अब यह धारणा भी रचना की मेहनत से टूट गई है। मेरा यही कहना कि बेटियां समाज का प्रमुख अंग है और उनको उनके लक्ष्य हासिल करने में समय दीजीए वो जरुर कुछ बडा कर सकती है।

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