धर्मः देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो कई हजार सालों पुराने हैं और इन मंदिरों मेें आज भी लोग पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान से सुख समृद्धि की कामना करते हैं। वहीं देश में सूर्य देव के कम ही मंदिर हैं जिनमें से एक सूर्यनार कोविल मंदिर है जो तमिलनाडु में स्थित है।
यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका इतिहास 11वीं शताब्दी से जुड़ा है। इसे देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक भी माना जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक, सूर्यनार कोविल मंदिर चोल वंश के राजा कुलोथुंग चोल प्रथम ने बनवाया था, और उस समय इसे कुलोत्तुंगचोला-मार्टंडालय कहा जाता था। मंदिर में 9 ग्रहों के लिए अलग-अलग मंदिर भी हैं, जो इसे एक अनोखा नवग्रह मंदिर बनाता है।
इस वजह से किया था मंदिर का निर्माण
मंदिर को चोल वंश के राजा द्वारा बनाने के पीछ की वजह यह रही कि राजा कुलोथुंग के गहड़वाल वंश के साथ अच्छे संबंध थे, जिनके शासक सूर्य के भक्त थे, जिसके चलते मंदिर का निर्माण किया गया। बाद में, विजयनगर साम्राज्य द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर को द्रविड़ वास्तुकला शैली में बनाया गया है और इसमें एक पांच-स्तरीय राजगोपुरम (प्रवेश द्वार) है।
नवग्रहोें की होती है पूजा

इतिहासकारों के मुताबिक, यह मंदिर नौ ग्रहों (नवग्रह) को समर्पित है, जिनमें से प्रत्येक के लिए अलग-अलग मंदिर हैं, जो इसे एक अद्वितीय नवग्रह मंदिर बनाता है। लोग यहां नवग्रहों की श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं। दूर-दूर से लोग यहां अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए आते हैं।
ये हैं पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ऋषि कलावा ने कुष्ठ रोग से पीड़ित होने पर नवग्रहों से प्रार्थना की थी। ग्रहों ने उन्हें ठीक कर दिया, लेकिन ब्रह्मा क्रोधित हो गए और उन्होंने ग्रहों को श्राप दे दिया। ग्रहों ने शिव से प्रार्थना की, जिन्होंने उन्हें इस स्थान पर पूजा करने का आशीर्वाद दिया।

मंदिर का उल्लेख मुथुस्वामी दीक्षितार के एक गीत में भी मिलता है, जो “सूर्यमूर्ति” से शुरू होता है। माना जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति से जुड़े दोषों को दूर किया जा सकता है।