ऊना/सुशील पंडित: हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा धारा 118 में किए जा रहे प्रस्तावित संशोधन को स्वामी विवेकानंद सेवा ट्रस्ट, चिंतपूर्णी ने प्रदेश हितों के विरुद्ध बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज किया है। ट्रस्ट का कहना है कि यह संशोधन हिमाचल की भूमि सुरक्षा, सांस्कृतिक पहचान और पर्यावरणीय संतुलन पर गहरा असर डाल सकता है।
ट्रस्ट अध्यक्ष गौरव कुमार ने कहा कि धारा 118 केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि हिमाचल की विशेष परिस्थिति, पहचान और भूमि को सुरक्षित रखने की एक महत्वपूर्ण दीवार है। यह धारा बाहरी लोगों द्वारा अनियंत्रित भूमि खरीद पर रोक लगाकर हिमाचल की पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को सुरक्षित रखती है। उन्होंने कहा— “धारा 118 को कमजोर करना हिमाचल की भूमि को मुक्त बाज़ार में धकेलने जैसा है, जिसका सीधा नुकसान स्थानीय लोगों और भविष्य की पीढ़ियों को होगा।”
गौरव कुमार ने स्पष्ट किया कि पहाड़ी राज्यों में भूमि सिर्फ एक संपत्ति नहीं, बल्कि रोज़गार, विरासत, प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय संतुलन का आधार होती है। ऐसे में भूमि संबंधी नीतियों में किसी भी प्रकार की ढील प्रदेश की भौगोलिक और सामाजिक संरचना पर दूरगामी नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। अगर संशोधन लागू हुआ, तो संभावित खतरे ,स्थानीय लोगों की भूमि सुरक्षा कमजोर पड़ेगी,बाहरी निवेशकों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण पहाड़ी संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक संतुलन पर दबाव
पर्यावरणीय हानि और अनियंत्रित शहरीकरण खेती योग्य भूमि का व्यावसायीकरण बढ़ना,आने वाली पीढ़ियों के भूमि अधिकार प्रभावित होंगे ट्रस्ट ने यह भी कहा कि भूमि एक बार बिक गई तो उसकी वापसी लगभग असंभव होती है। इसलिए सरकार को जनभावनाओं का सम्मान करते हुए इस मुद्दे पर जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए।
सरकार से ट्रस्ट की मांग
धारा 118 में प्रस्तावित संशोधन को तत्काल वापस लिया जाए। हिमाचल की भूमि सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए ठोस और दीर्घकालिक नीति तैयार की जाए।विषय पर जनता, सामाजिक संगठनों, विशेषज्ञों और स्थानीय निकायों से व्यापक राय-मशविरा करके ही आगे बढ़ा जाए।पहाड़ी राज्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए भूमि संरक्षण नीति पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू की जाए। धारा 118 हिमाचल की सुरक्षा रेखा है, और इसमें किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ स्वीकार नहीं।”