मतदाताओं को दर्द देकर गया 2022 का चुनाव!

मतदाताओं को दर्द देकर गया 2022 का चुनाव!

मतदाताओं ने दून-नालागढ़ विधानसभा में हुई बद-इंतजामियों पर नालागढ़ प्रशासन को जमकर घेरा

बद्दी (सचिन बैंसल)। दून विधानसभा क्षेत्र में चुनाव तो शांतिपूर्वक संपन्न हो गया लेकिन इस दौरान मतदाताओं को जो दर्द मिले वो उसको लंबे समय तक भूल नहीं पाएंगे। दून विधानसभा के मैदानी इलाके में जिला प्रशासन व चुनाव आयोग ने चुनाव से पूर्व वो अभ्यास नहीं किया जो उसको करना चाहिए था जो कि पूर्व के चुनावों का अनुभव था। 2017 के विस चुनावों के साथ साथ 2019 के लोकसभा चुनावों में आई दिक्कतों पर अवलोकन करने का एक भी बार उपमंडल  के अधिकारियों ने जरुरी नहीं समझा। अधिकारी दिल्ली व शिमला से आए हुए आयोग के स्लोगनों को शेयर करते हुए उसका प्रचार प्रसार करते रहे लेकिन हकीकत में लोकतंत्र के इस पर्व को अम्लीजामा कैसे पहनाया जाए उस पर वर्क ही नहीं किया। कारण यह हुआ कि लोग सुबह 8 बजे से लेकर रात को 10 बजे तक वोटिंग मे उलझे रहे। दून विस के मलपुर बूथ में लोगों ने नाश्ता-दोपहर का भोजन व रात का भोजन इधर उधर से मंगवाकर वहीं किया। नालागढ़ के डोली बारियां बूथ में यही हुआ। बिना वजह व बिना कारण से इतने बडे बडे बूथ बना दिए गए जिसका कोई औचित्य नहीं था। 1400 के लगभग संख्या के बूथों में एक मशीन ने भुगतान होना मुश्किल है यह सब जानते हैं तो अधिकारी दफतरों में बैठकर क्या आकलन करते रहे। कहीं बैठने को जगह नहीं था कहीं गंदगी बहुत थी तो कहीं पीने का पानी तक नहीं था तो कहीं बाथरुम साफ नहीं थे। महिलाओं व बुजुर्गों के साथ साथ विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए मानो यह लोकतंत्र का त्यौहार कोई दर्द लेकर आया हो लेकिन फिर भी देवतुल्य जनता मौके पर रात दस बजे तक डटी रही। इस संदर्भ में बहुत सी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रशासन को बद इंतजामियों पर जमकर घेरा--

इस बार  वोटर को इतनी परेशानी हुई है इतनी कभी भी नहीं हुई है। यदि आगे को पोलिंग बूथ कि संख्या नहीं बढ़ाई तो आगे से कोई भी वोट डालने नहीं जाएगा। सबसे ज्यादा दु:ख तो तब हुआ कि बहुत सारे वोटर वोट देने के लिए चंडीगढ़ और पंचकूला से आऐ और बेचारे 3 घण्टे तक लाइनों मे खडे रहे। जो लोग यहॉ 20 सालों से रह रहे थे उनके अपने मकान भी है पुरानी वाली लिस्ट में से हटा दिए गए ।  बिना मकान नंबर और बिना पक्के पक्के पू्रफ वाले लोगों के नाम लिस्ट मे डाले गए। पूरे मनमाने तरीके से काम किया गया है। जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है जबकि फेज़ 3 के लोगो ने नालागढ़ प्रशासन से मिलकर बहुत पहले फेज़ 3 और बंसती बाग वाले वोटर  के लिए अलग बूथ बनाने का प्रस्ताव दिया था उसको कैंसिल कर दिया। जिसके कारण लोगो को भारी परेशानी का सामना कल करना पड़ा। नालागढ़ प्रशासन के समस्त कृत्य वोटरों को तंग करने वाले थे।

--कुलवीर सिंह आर्य, अध्यक्ष आर्य समाज बददी--

लगभग सभी बूथों पर ऐसा हाल ही था। हमारे बूथ पर 1200 से अधिक वोट थे और बहुत धीमी गति से वोटिंग हो रही थी। मैने तो देखा कि कुछ लोग जो कि शारीरिक रुप से अक्षम थे उनको वोट डालने के लिए बहुत मशक्कत करनी पडी। मरीजों व बुजुर्गों को बहुत परेशानी हुई। चुनाव आयोग हर बूथ जिसमें 600 से ज्यादा वोट है में दो मशीनें स्थापित करे।

--भगत राम-सेवानिवृत अध्यापक झाडमाजरी--

मंधाला गांव की करीब 1160 वोटो के लिए सिर्फ एक बूथ है और लोग भेड बकरियों की तरह दो दो घंटे से खडे अपनी बारी का ईंतजार कर रहे हैं । सीनियर सिटीजन के लिए कोई प्राथमिकता नहीं दी जा रही जो चुनाव आयोग की हिदायतों का खुल्लमखुला उलंघन है । पोलिंग स्टाफ बेहद धीमी गति से काम कर रहा था । कोई भी अधिकारी सुनने को तैयार नहीं था । लोग बिना वोट डाले वापिस मुड रहे थे । मतदान कम होने की पूरी संभावना है । जिला निर्वाचन अधिकारी की भूमिका संदिग्ध है वर्ना चुनाव में ऐसा तकनीकी कुप्रबंधन कत्तई बर्दाश्त नहीं किया जाता । मैने भी अनगिनत चुनावों में बतौर सैक्टर मजिस्ट्रेट अतयंत संवेदनशील इलाकों में भूमिका निभाई है लेकिन हैरान हूं ऐसी कुव्यवस्था और घोर लापरवाही के लिए तो जिम्मेदार अधिकारी अब तक चार्जशीट हो चुके होते।

-हरबंस लाल मैहता-सेवानिवृत अधिकारी-मंधाला-

बददी पोलिंग बूथ पर भी वे यही हाल था....! घंटों  बीमार और  बूढ़े वा मेहलाएं कतारों में खड़े रहे। मात्र एक मशीन वार्ड 1 व 2 के लिए लगाई गई थी। केंद्रीय पुलिस बल के जवानों का व्यवहार भी एग्रेसिव वा असभ्य था। कम से कम महिलाओं और ब सीनियर सिटीजन के लिए अलग से पंक्ति होनी चाहिए थी। हर बूथ में कम से कम 2 ईवीएम होनी चाहिए। मैने भी लगभग 15 साल अपनी फोर्स को डिप्लॉय कर ऑल ओवर इंडिया विभिन राज्यों मैं चुनाव में सिक्यूरिट व्यवस्था को निभाया है। ऑफ केंद्रीय बल का अधिकारी होने के नाते कर्तव्य का निर्वाह किया है। डिस्ट्रिक्ट लेवल पर तथा केंद्रीय चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ मीटिंग्स में शामिल हो कर सुचारु व जन सुविधाओं व जन सम्मान को ध्यान में रखते हुए चुनाव को अंजाम तक पहुंचाया है।  मगर ऐसी अव्यवस्था मैने कहीं भी नहीं देखी। ये सब डिवीजन लेवल पर तैनात प्रशासनिक अधिकारियों की घोर असफलता है। केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों और राज्य पुलिस कर्मीयों को भी आम जनता की भावनाओं और उनके सम्मान का पूरा ध्यान रखने भी विनम्रता के साथ पेश आने का हिदायत देना जरूरी है। यह कर्मी सेवक हैं मालिक नहीं, इस बात पुलिस बल के सदस्यों को ध्यान में रखना चाहिए। हिमाचल के लोग तो वैसे भी अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ही सभ्य और सुसंस्कृत वा शांति प्रिय होते हैं।

--अमर चंद ठाकुर-सेवानिवृत पुलिस अफसर  भारत सरकार--