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जालंधरः नगर निगम में अवैध कालोनियों को अप्रूव करवाने का चल रहा फर्जीवाड़ा, मेयर ने ज्वाइंट कमिश्नर को दिए जांच के आदेश

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जालंधर, (वरुण/अनिल): महानगर में अवैध कालोनियों को लेकर बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। सरकार के शिकंजे के बाद अब कालोनाइजरों ने कालोनियों को अप्रूव करवाने के लिए का नया तरीका ढूंढा है। दरअसल, खेतों में काटी गई कालोनियों को रेगुलर करवाने की मियाद पूरी होने की बाद अब कालोनाइजर कालोनी को अप्रूव नहीं करवा रहे बल्कि जो नई रजिस्ट्रियां हुई हैं उनमें टेंपरिंग कर उनकी तारीख पीछे खिसका कर निगम से छोटे-छोटे प्लाटों की अप्रूवल ले रहे हैं। 

यह फर्जीवाड़ा पूरे पंजाब में चल रहा है। चल रहे इस फर्जीवाड़े का एक मामला जालंधर से सामने आया है। यहां पर निगम में एक प्लाट का रेगुलाइजेशन सर्टिफिकेट पिछले महीने 2017 की रजिस्ट्री के आधार पर जारी किया गया। जब नक्शा अप्रूव होने के लिए नगर निगम में आया तो उसके साथ एक ही प्लाट की साथ दो रजिस्ट्रियां लगी हुई थीं। एक 2020 में हुई थी और दूसरी रजिस्ट्री 2017 में हुई थी। 

आपसी मिलीभगत के साथ चल रहा यह फर्जीवाड़ा

यह सारा फर्जीवाड़ा आपसी मिलीभगत के साथ चल रहा है। जिस तरह से निगम की नक्शा ब्रांच में दो रजिस्ट्रियां एक ही प्लाट की पकड़ी गई हैं और साथ में ही पिछले महीने उसी प्लाट पर जारी हुआ एनओसी हाथ आया है उससे निगम की आउटसोर्सिंग कंपनियां भी सवालों की घेरे में आ गई हैं। यह नक्शा अप्रूव होने के लिए ई नक्शा पोर्टल देखने वाली आउटसोर्सिंग कंपनी की मार्फत आया था। इसमें सभी प्रकार की शर्तों पर टिक किया हुआ था। लेकिन नक्शा ब्रांच में जब दस्तावेजों की जांच की गई तो बिल्ली थैले से बाहर आ गई।

मेयर जगदीश राजा के पास पहुंचा धांधली का मामला

बहरहाल नगर निगम के नक्शा ब्रांच में पकड़ी गई इस गड़बड़ी का यह सारा मामला मेयर जगदीश राजा के पास पहुंचा था। उन्होंने इसे आगे सहायक निगम कमिश्नर गुरविंदर रंधावा को भेज कर इस पर अगली कार्रवाई के आदेश दे दिए हैं। पता चला कि निगम की सहायक कमिश्नर ने भी आगे इसे टाउन प्लानिंग विभाग में भेज दिया है। स्टांप पेपर नंबर व मजमून एक ही, तारीख अलग-अलग रजिस्ट्री में टेंपरिंग भी इतनी सफाई से की गई है कि उस आम व्यक्ति पकड़ नहीं सकता। दोनों रजिस्ट्रियों में स्टांप पेपर के नंबर तो समान हैं ही साथ ही दोनों में प्लाट के साइज और पैसों के लेन देन से लेकर सारा मजमून भी एक समान है। यहां तक कि रजिस्ट्री में जो तहसीलदार के साथ फोटो लगी है वह भी एक ही है। 

दोनों रजिस्ट्रियों की तारीख में 3 साल का अंतर

इन दोनों रजिस्ट्रियों की तारीख में पूरे तीन साल का अंतर है। एक 15-09-2017 को हुई है तो दूसरी रजिस्ट्री पूरे तीन साल बाद 15-0-2020 को हुई है। यह अंतर इसलिए है क्योंकि पिछली सरकार अवैध कालोनियों को रेगुलर करने के लिए पालिसी बनाई थी लेकिन उस पालिसी को बाद में साल 2020 में बंद कर दिया गया। बहुत सारे कालोनाईजर इस मुगालते में थे कि शायद यह काम धंधा एसे ही चलता रहेगा। कांग्रेस शासन में यह चलता भी रहा किसी ने उनपर हाथ डालने की कोशिश नहीं की। लेकिन जैसे बदलाव के तख्ता पलट हुआ और नई पार्टी की नई सरकार आई तो उन्होंने एसी अवैध कालोनियों पर मशीनें चलानी शुरू कर दी।

फर्जीवाड़ा से छोटे प्लाटों की रजिस्ट्रियां बैक डेट में बनाओ और उनकी एनओसी लो

इसके बाद कालोनाईजरों को जब कोई रास्ता नजर नहीं आया और प्लाट खरीदने वालों ने परेशान करना शुरू किया तो उन्होंने यह नया फंडा निकाल लिया कि फर्जीवाड़ा करके छोटे-छोटे प्लाटों की रजिस्ट्रियां बैक डेट में बनाओ उनकी एनओसी लो। जब एक ही कालोनी में कुछ प्लाट रेगुलर हो जाएंगे तो निगम की सुविधाएं सभी तक पहुंच जाएंगी।  

ई-नक्शा कंपनी की कार्यप्रणाली सवालों में निगम की नक्शा ब्रांच में पकड़े गए इस फर्जीवाड़े के बाद अब नगर निगम की आउट सोर्स कंपनियों की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में आ गई है। अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि नक्शा ब्रांच के पास यह सारे दस्तावेज ई नक्शा का कामकाज देखने वाली निजी कंपनी की मार्फत आए हैं। उन्होंने बिना कुछ देखे इसे अपने पोर्टल पर अपलोड करने के साथ-साथ अग्रिम कार्रवाई के लिए आगे सरका दिया। 

तहसील में हुई यह गड़बड़ी 

यह दोनों एक ही स्टांप पेपर पर अलग-अलग तारीख को हुई रजिस्ट्रियां पकड़ी गई हैं यह सुभाना में पड़ती है और इसे रामामंडी के पास पड़ते काकी पिंड के एक व्यक्ति ने खरीदा है। दोनों रजिस्ट्रियों को देख कर लगता है कि यह गड़बड़ी जमीन खरीदने और बेचने वाले ने नहीं की है बल्कि तहसील में ही यह गड़बड़ी हुई है जिसका खामियाजा अब जमीन खरीदने वाले को भुगतना पड़ेगा। 

मोबाइल पर हो रहे नक्शे पास 

फटेहाल नगर निगम की नक्शा पास करने वाली ब्रांच में नक्शा पास करने का काम कर्मचारियों को अपने मोबाइल फोन पर दिया गया है। यह इसलिए दिया गया है कि क्योंकि इतने बड़े शहर के नगर निगम की नक्शा पास करने वाली ब्रांच में सिर्फ एक ही कम्प्यूटर है। उसी पर शहर के नक्शे बनते भी हैं और पास भी होते हैं। नक्शा ब्रांच में काम करने वाले कुछ कर्मचारियों ने कहा कि जिस तरह से नक्शा पास करने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल किया जा रहा है उससे कभी भी कोई भी गलती हो सकती है। कोई भी गलत नक्शा पास हो सकता है। क्योंकि जो काम कम्प्यूटर होता है वह मोबाइल पर संभव नहीं है। मोबाइल पर नक्शे को ढंग से नहीं देखा जा सकता। जिस दिन गड़बड़ी हो जाएगी उस दिन अधिकारी भी उनका साथ देने की बजाय उनके खिलाफ कार्रवाई पर उतारू हो जाएंगे।

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