लुधियाना। हिंदी सिनेमा के ही-मैन कहे जाने वाले धर्मेंद्र का 24 नवंबर को 89 साल की उम्र में निधन हो गया। 8 दिसंबर को वे अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले थे, लेकिन इससे पहले ही वे दुनिया को अलविदा कह गए। इसी वजह से देओल परिवार ने फैसला किया है कि उनका जन्मदिन मुंबई में श्रद्धांजलि कार्यक्रम के रूप में मनाया जाएगा।
वहीं, पैतृक गांव डंगों के लोग मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि उनके 90वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में गुरुद्वारा में पूरे गांव के लोग एकत्रित होकर उनके आत्मा के शांति के लिये अरदास करेंगे। साथ उनके याद में छोटे बच्चों का क्रिकेट प्रतियोगिता कराई जाएगी। इसके बाद कहा कि धर्मेंद्र को पैतृक गांव डंगों हमेशा से उन्हें अपने बेटे की तरह ही मानता आया है।
डंगों गांव का धर्मेंद्र से अटूट रिश्ता
धर्मेंद्र का पैतृक गांव डंगों (पंजाब) हमेशा से उन्हें अपने बेटे की तरह ही मानता आया है। गांव में उनके प्रति इतना प्यार है कि लोग कहते हैं— वो हमारे पाजी ही नहीं, हमारे दिल का हिस्सा हैं।
गांव में पूरी न हो सकी एक इच्छा
2013 में चंडीगढ़ में मुलाकात के दौरान धर्मेंद्र ने हंसते हुए कहा था कि—उन्हें मिट्टी के चूल्हे पर बना सरसों दा साग, मक्की दी रोटी और देसी जुगाड़ रेहड़ी की सवारी करनी है। 2015 में वे गांव तो आए, लेकिन काम की वजह से यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई। अब जब उनका 90वां जन्मदिन याद में मनाया जा रहा है, गांव वाले इसे मौका मान रहे हैं कि अपने पाजी की यह इच्छा अब गांव मिलकर पूरी करेगा। सबसे खास बात यह है कि साग उन्हीं खेतों से तोड़ा जाएगा, जो खेत धर्मेंद्र ने 2015 में अपने रिश्तेदारों को गिफ्ट किए थे।
भेष बदलकर गांव में आते थे धर्मेंद्र
डंगों गांव के लोग बताते हैं कि धर्मेंद्र अक्सर भीड़ से बचने के लिए भेष बदलकर गांव आया करते थे। वह चाहते थे कि बिना शोर-शराबे के वो अपने लोगों से खुलकर मिल सकें।
जन्मभूमि से दूर रहने का दर्द किया था बयां
2013 में लंबे समय बाद जब धर्मेंद्र अपने गांव लौटे, तो मंज़र बेहद भावुक था। उन्होंने गांव की मिट्टी माथे पर लगाई। अपने रिश्तेदारों से माफी मांगी कि काम की वजह से वे इतने साल दूर रहे। अपनी बुज़ुर्ग चाची प्रीतम कौर से लिपटकर फूट-फूटकर रोए। उनका माथा चूमकर लंबी उम्र की दुआ मांगी। धर्मेंद्र ने कहा था— मुंबई और काम की वजह से मैं अपनी मिट्टी से दूर हो गया, इसका दुख हमेशा रहेगा।
धर्मेंद्र की याद हमेशा कायम रहेगी
आज भले ही धर्मेंद्र इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी सादगी, उनके किस्से, उनका प्यार हर उस दिल में हमेशा जिंदा रहेगा जिसने उन्हें कभी पर्दे पर या असल जिंदगी में देखा। 8 दिसंबर को होने वाला यह कार्यक्रम सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि उनके व्यक्तित्व, उनकी विनम्रता और उनके इंसानियत भरे दिल का शांत, सरल और सम्मानित उत्सव है।