नई दिल्ली: Gen Z शब्द आपने कई बार सुना होगा लेकिन Millennial यह शायद कम सुना हो। यह दोनों ही अलग-अलग जनरेशन के लोगों के लिए इस्तेमाल होता है। जो लोग 1981 से साल 1996 में पैदा हुए हैं उनको जनरेशन Millennial कहते हैं। वहीं जो लोग 1997-2012 के बीच में पैदा हुए हैं। उनको जनरेशन Z कहते हैं। यहां पर सिर्फ नामों का ही फर्क नहीं होता बल्कि दोनों जनरेशन की सोच, समझ और हाव भाव में भी काफी फर्क है। आज आपको बताते हैं कि कैसे यह दोनों जनरेशन एक-दूसरे से अलग है।
कौन होते हैं Millennial?
1981 से साल 1996 तक पैदा होने वाले लोग मिलेनियल्स ने पास से दुनिया को बदलते हुए देखा है। इस पीढ़ी ने बचपन में लैंडलाइन फोन इस्तेमाल किए और रेडियो-कैसेट टेप पर गाने भी सुने। वहीं आज की पीढ़ी लैंडलाइन की जगह स्मार्टफोन चला रही है। रेडियो और कैसेट की जगह होम थिएटर, स्पॉटिफाई का इस्तेमाल कर रही है। समय बदलने के साथ-साथ इस जनरेशन ने भी खुद को स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और डिजिटल टेक्नोलॉजी की तेज रफ्तार दुनिया में ढाल लिया है।
दोनों ही जनरेशन में सोच का अनोखा मिश्रण है। ये नॉस्टैल्जिया में पुराने गानों की प्लेलिस्ट बनाते हैं लेकिन इसके साथ ही क्रिप्टोकरेंसी और एआई जैसी नई चीजों को भी अपनाने से पीछे नहीं हटते हैं।
कौन होते हैं Gen Z?
जनरेशन Z की बात करें तो जो लोग 1997 से 2012 के बीच में पैदा हुए हो। यह पीढ़ी पूरी तरह से इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के दौर में पली बढ़ी है। इसी वजह से यह तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए मिलेनियल्स से कही बेहतर हैं। बचपन से ही ऑनलाइन जानकारी, ऐप्स और टेक्नोलॉजी से जुड़े रहने के कारण यह तेजी से बदलती हुई दुनिया में खुद को आसानी से ढाल लेते हैं और हमेशा अपडेटेड ही रहते हैं।
रिपोर्ट्स यह कहती हैं कि यह पीढ़ी अपने फैसले भी खुद लेना ही पसंद करती है। इसके अलावा दूसरे के साथ अपनी जरुरतें और इच्छा को भी महत्व देती है। करियर के मामले में भी यह लोग सोच-समझकर ही फैसले लेते हैं। डॉक्टर, इंजीनियर की रेस से दूर अपने टैलेंट और पसंद का करियर ही यह लोग चुनते हैं। इस जनरेशन का मानना है कि लोगों से घुलने-मिलने या दोस्ती करने के लिए वाइब्स मैच होना बहुत जरुरी है। यदि वाइब्स मैच हो तो बात आसानी से जम जाती है और माहौल अच्छा लगता है। इससे रिश्तों में नैचुरल कंफर्ट भी आता है।
ऑफिस वर्क को लेकर Gen Z की सोच
एक सर्वे के मुताबिक, 47% GEN Z दो साल के बाद अपनी नौकरी छोड़ देते हैं वहीं उतने ही लोग नौकरी के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता देते हैं। Gen Z at Workplace टाइटल वाली इस रिपोर्ट में 5350 से ज्यादा जनरेशन जेड और 500 एचआर प्रोफेशनल्स युवाओं के सर्वे से तैयार हुई है। इनका मानना है कि ऑफिस में कूल माहौल होना चाहिए न कि टॉक्सिक। ये जनरेशन अपनी मेंटल हेल्थ को सबसे ज्यादा प्रायोरिटी देती है।
इनका मानना है कि ऑफिस ऐसा होना चाहिए जहां पर लोग अपनी वर्क लाइफस को अच्छे से बैलेंस कर पाएं। जनरेशन Z ऑफिस में फेवरेटिज़्म (पक्षपात) के खिलाफ होती है। इनका मानना है कि हर कर्मचारी को उसकी मेहनत, प्रदर्शन और उसके कौशल के आधार पर ही काम और मेहनत का फल मिलना चाहिए न कि रिलेशन्स या पसंद-नापसंद के अनुसार। यदि ऑफिस में प्रमोशन, अवसर या जिम्मेदारियां सिर्फ कुछ मनपसंदीदा लोगों को मिलती हैं तो Gen Z इसको न सिर्फ गलत मानते हैं बल्कि खुलकर सवाल भी उठाते हैं।
जेन Z जनरेशन के 78% लोग अपने करियर ग्रोथ के लिए नौकरी बदलने में विश्वास रखते हैं। खासतौर पर एचआर प्रोफेशन्स के 71% युवा यही मानते हैं कि अच्छी सैलेरी होनी चाहिए। नई पीढ़ी में 25% लोग ऐसे होते हैं जो नौकरी बदलते समय मोटिवेशन से ज्यादा सैलरी को अहमियत देते हैं।
खुलकर खर्च करना चाहती है ये जनरेशन
रिपोर्ट Gen Z के बारे में यह भी बताती है कि यह जनरेशन सेविंग करने से ज्यादा खर्च करने में विश्वास रखती है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जनरेशन जेड आबादी के खर्च के रुझान से यह पता चलता है कि 2035 तक यह 2 लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा। स्नैक इंक के अनुसार, 37.7 करोड़ से ज्यादा जनरेशन जेड आबादी के साथ भारत एक युवा राष्ट्र बन चुका है। ये आबादी खपत के जरिए अगले दो दशकों में भारत के विकास के भविष्य को एक नया आकार दे सकती है। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि 2050 तक जनरेशन Z आबादी के सीधे तौर पर 250 अरब डॉलर खर्च कर लेगी और 2035 तक ये आंकड़ा 1.8 लाख रुपये डॉलर तक पहुंच जाएगा।
दोनों जनरेशन की बॉडी लैंग्वेज में ही काफी फर्क
मिलेनियल्स और जेन Z की बॉडी लैंग्वेज में भी बहुत फर्क है। मिलेनियल्स में पुराने समय की विनम्रता और नए दौर की आत्मविश्वास भरी एनर्जी का मिक्सचर दिखता है। यह किसी से बात करते हुए सिर हिलाकर ध्यान से सुनते हैं और फिर अपनी बात रखते हैं। मिलेनियल्स कभी-कभी अपनी बात सामने वाले से इसलिए नहीं कहते कि उसको बुरा लग जाएगा और या फिर वो जज न करें। इनका यह भी मानना होता है कि यदि किसी को कुछ कह दिया तो आगे उनके लिए दिक्कत होगी परंतु जेन Z इनसे बिल्कुल ही अलग है।
जेन Z जनरेशन अपने व्यूज लोगों के सामने रखने में विश्वास रखते हैं। यह बातचीत के दौरान जल्दी-जल्दी प्रतिक्रिया दे देते हैं। अपने चेहरे के एक्सप्रेशन भी बहुत बदलते हैं और हाथों का इस्तेमाल खुलकर करते हैं। इसके अलावा जेन Z मिलेनियल्स के मुकाबले मेें कैमरा के सामने ज्यादा कॉन्फिडेंट होते हैं। वीडियो कॉल, सेल्फी और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की आदत से इनकी बॉडी लैंग्वेज में कैमरा कॉन्फिडेंस साफ दिखता है। इसके अलावा कपड़ों के मामले भी यह हर ट्रेंड सेट करते हैं और उसको तुरंत अपना भी लेते हैं।