कहा – पंजाब के पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं
SYL की बजाय YSL का विचार किया पेश
नई दिल्ली: श्रम शक्ति भवन में एक बैठक में हिस्सा लेते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब के पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है, इसलिए एक बूंद भी सांझा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार राज्य में पानी की उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन कराने की आवश्यकता है। राज्य के अधिकांश ब्लॉक पहले ही खतरे की कगार पर पहुंच चुके हैं और राज्य में भूजल की स्थिति गंभीर हालत में है।
मुख्यमंत्री ने सिंधु नदी के पानी में हिस्सा मांगने के साथ-साथ सतलुज यमुना लिंक (एस.वाई.एल.) नहर के बजाय यमुना सतलुज लिंक (वाई.एस.एल.) नहर का विचार भी प्रस्तुत किया। राज्य के कई नदी स्रोत सूख चुके हैं, जिसके कारण सिंचाई जरूरतों को पूरा करने के लिए और पानी की आवश्यकता है। जब पंजाब खुद ऐसी स्थिति का सामना कर रहा हो, तो किसी अन्य राज्य को एक बूंद भी अतिरिक्त देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इस दौरान मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव रखा कि सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार कर पश्चिमी नदियों से पानी लाने के लिए प्रयास कर कमी को पूरा किया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सिंधु जल संधि को स्थगित करने के अवसर का उचित उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि राज्य की पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सके। भारत सरकार के हालिया फैसले ने भारत से सटी पश्चिमी नदियों (सिंधु, जेहलम और चिनाब) से पानी का अधिकतम उपयोग करने की बड़ी संभावनाएं पैदा की हैं। पंजाब इस समय भूजल के गिरते स्तर की समस्या से जूझ रहा है, इसलिए राज्य को नदी जल के उपयोग, प्रवाह और वितरण के लिए भविष्य की रणनीतियों में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पश्चिमी नदियों का पानी प्राथमिकता के आधार पर पंजाब को दिया जाना चाहिए और हिमाचल प्रदेश में मौजूदा भाखड़ा और पौंग बांधों के ऊपर नए जलाशय बांध बनाए जाने चाहिए। इससे पश्चिमी नदी जल के भंडारण और नियमन में काफी वृद्धि होगी। यह समय की मांग है कि पंजाब को उचित मुआवजा दिया जाए, जिसने देश को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पानी और उपजाऊ भूमि जैसे अनमोल प्राकृतिक संसाधनों को भी दांव पर लगा दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि लंबे समय से चल रहे शारदा-यमुना लिंक प्रोजेक्ट को प्राथमिकता के आधार पर लिया जाना चाहिए और अतिरिक्त पानी को उचित स्थान पर यमुना नदी में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे उपलब्ध अतिरिक्त पानी हरियाणा की रावी-ब्यास व्यवस्था से पानी के संतुलन की जरूरत को पूरा कर सकता है, साथ ही दिल्ली की लगातार बढ़ती पेयजल जरूरत और राजस्थान को यमुना के पानी की उपलब्धता को पूरा कर सकता है। उपरोक्त परिस्थितियों के अनुसार एस.वाई.एल नहर के निर्माण के मुद्दे को टाला जा सकता है और इसे हमेशा के लिए त्याग दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा की मांगों को पूरा करने के लिए शारदा-यमुना लिंक का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि शारदा के अतिरिक्त पानी को यमुना नदी में स्थानांतरित किया जा सके और चिनाब के पानी को रोहतांग सुरंग के माध्यम से ब्यास नदी में मोड़ा जा सके, ताकि एस.वाई.एल नहर की आवश्यकता को समाप्त किया जा सके।
उन्होंने कहा कि एस.वाई.एल मामले (ओ.एस नंबर-6 ऑफ 1996) के संबंध में कार्यवाही को तब तक स्थगित रखा जा सकता है जब तक रावी-ब्यास ट्रिब्यूनल का फैसला नहीं आ जाता। भगवंत सिंह मान ने कहा कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के बीच यमुना के पानी के वितरण के 12 मई, 1994 के समझौते की समीक्षा 2025 के बाद की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने मांग की कि पंजाब को यमुना के पानी के वितरण में हिस्सेदार राज्य के रूप में शामिल किया जाए और यमुना के पानी का वितरण करते समय शारदा-यमुना के 60 प्रतिशत पानी को पंजाब के लिए विचार किया जाए। सतलुज यमुना लिंक (एस.वाई.एल) नहर के बजाय इस प्रोजेक्ट को अब यमुना सतलुज लिंक (वाई.एस.एल) के रूप में पुनर्विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि सतलुज नदी पहले ही सूख चुकी है और इसमें से एक बूंद भी पानी साझा करने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
पंजाब ने पहले ही रावी-ब्यास के अतिरिक्त पानी के संबंध में 1981 में बने समझौते को रद्द कर ‘पंजाब समझौता रद्द अधिनियम, 2004’ के तहत निरस्त कर चुका है। उन्होंने कहा कि राज्य ने ‘पंजाब समझौता रद्द अधिनियम, 2004’ की धारा-5 के तहत रावी-ब्यास के पानी के हरियाणा द्वारा उपयोग को बरकरार किया। भगवंत सिंह मान ने बताया कि पंजाब से पाकिस्तान की ओर कोई पानी नहीं छोड़ा जा रहा और पाकिस्तान में जो पानी पहुंच रहा है, वह जम्मू-कश्मीर से निकलने और बहने वाली उज्ज नदी के माध्यम से पहुंचता है।