फिरोजपुरः जिले के गांव कोठे किल्लीवाला में पंचायत चुनाव में मां-बेटे एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। जिसमें मां ने बेटे को चुनाव में हरा दिया। जीत के बाद मां ने कहा कि वह अब भी मेरा बेटा है, वह रिश्तेदारों की बात में आकर घर को खराब करने चला था, लेकि वह आज भी अपने बेटे को गले लगाने के लिए तैयार है। पंचायत में सरपंच पद के लिए मां और बेटे के बीच कांटे की टक्कर का मुकाबला हुआ है।
हालांकि इस रोमांचक मुकाबले में बेटे की हार हुई है और मां ने सरपंच पद का चुनाव जीत लिया। दोनों मां और बेटे के बीच मतों का अंतर मामूली रहा है। कुल 24 मतों से मां सुमित्रा बाई सरपंच का चुनाव जीती हैं। वहीं बेटे बोहड़ सिंह को चुनाव में मुंह की खानी पड़ी है। सरपंच उम्मीदवार सुमित्रा बाई ने कहा कि उनके बड़े बेटे ने सरपंच पद के लिए नामांकन भरा था। उनका बेटा ही चुनाव लड़ रहा था। सुमित्रा बाई ने बेटे के लिए रिकवरिंग कैंडिडेट के तौर पर नामांकन भरा था। बड़े बेटे का नामांकन रद्द हो गया। इस वजह से सुमित्रा बाई को सरपंच पद का उम्मीदवार बनाया गया था।
गांव कोठे किली में सरपंच पद के लिए मां सुमित्रा बाई और छोटे बेटे बोहड़ सिंह के बीच मुकाबला था। सुमित्रा बाई ने बताया कि उनका छोटा बेटा उनके साथ नहीं रहता है। पिछले एक साल से बोहड़ सिंह का मां सुमित्रा बाई के साथ बोलचाल भी नहीं है। इसलिए वह पंचायत चुनाव के लिए मैदान में उनके खिलाफ खड़ा हुआ था। मंगलवार चुनाव के घोषित हुए नतीजे में उसने बेटे को 24 मतों से हार का सामना करना पड़ा।
सुमित्रा बाई सरपंच बनने के बाद कहा कि यह चुनाव उन्हें गांव के लोगों ने जिताया है। क्योंकि चुनाव तो उनका बड़ा बेटा लड़ रहा था, लेकिन उसका नामांकन रद होने की वजह सुमित्रा बाई उम्मीदवार बन गईं। वहीं, छोटा बेटा बोहड़ सिंह उनके साथ नहीं रहता, इसी रंजिश में उसने सरपंच पद के लिए खुद को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन गांव के लोगों ने सुमित्रा बाई पर भरोसा जताते हुए उन्हें सरपंच पद पर जीत दिलाई है।
गांव कोठे किली में पंचायत चुनाव के लिए कुल मतदाताओं की संख्या 309 है। वहीं इनमें से कुल 254 लोगों ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें से सुमित्रा बाई को 129 वोट मिले और बोहड़ सिंह को 105 वोट ही पड़े। इससे पहले गांव की सरकार चुनने के लिए मतदाताओं में खूब उत्साह दिखाया। लोग अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए सुबह से लाइनों में लगे दिखे। उम्र और सेहत की परवाह किए बिना बुजुर्गों ने अपने अधिकार का प्रयोग किया।
