रथ और घोड़ों के पूजन के पीछे क्या है रहस्य
ऊना/सुशील पंडित: ऊना की महिलाओं ने दो दिन पहले बदोली में एक रथ को रोका। रथ के घोड़े को ढका और फिर रथ व घोड़े का पूजन किया। आखिर यह परंपरा कितनी पुरातन है और इसके पीछे क्या रहस्या है। असल में यह पूजा सूर्य देव की है। उनके घोड़े और उनके रथ की है। सेरी के संजू पंडित बताते हैं कि शास्त्रों में इस पूजा का बहुत सुंदर वर्णन है। वे बताते हैं कि जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है तो पूजा पाठ व जप तप का फल कई गुणा बढ़ जाता है। क्योंकि सूर्य के रथ के आगे सात घोड़े हैं और उत्तरायण में प्रवेश को शुभ माना गया है इसलिए भारत में हजारों वर्षों से यह पूजा चली आ रही है। पंडित संजू बताते हैं कि जो मनुष्य उत्तरायण में प्राण त्यागता है वह सदगति को प्राप्त होता है। एक अन्य कथा हमें महाभारत में भी मिलती है। जब कौरवों की ओर से लड़ रहे भीष्म पितामाह अर्जुन के वाणों की शैया पर लेटे थे। तब उन्होंने दक्षिणान के समाप्त होने और उत्तरायण के आरंभ होने की प्रतीक्षा की। जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश हुआ तब जाकर उन्होंने अपने प्राण त्यागे। अर्थात उस समय हमारी संस्कृति के ये सूक्षम संस्कार भी चलन में थे। आज यदि किसी प्रदेश में यह संस्कृति जीवित है तो यह अत्यंत हर्ष का विषय है।

जिला ऊना के बदोली ग्राम पंचायत की महिलाओं ने भी इस पूजन के समय हमसे कहा था कि हमें इस पूजा के बारे में कुछ समय पूर्व ही पता चला है लेकिन अब हमने इसे अपना लिया है। हमें भी किसी विद्वान व्यक्ति ने इस संस्कार की जानकारी दी थी। जब पूछा गया कि आपने इस पूजा को रथ रोकना क्यों कहा तो उन्होंने कहा कि अब दिन छोटे और रातें लंबी हो रही हैं। अब आगे से दिन लंबे और रातें छोटी होनी शुरू हो जाएंगी। हालांकि ये सारे अंग्रेजी कैलेंडर से ली गई व्याख्या है। बदोली की महिलाओं ने जिस प्रकार सूर्यदेव के अश्व और रथ पूजन को फिर से शुरू किया है। जल्द ही उन्हें इसके पूरे रहस्यों की भी जानकारी मिल जाएगी। पूजा के समय बदोली गांव से मीनू शर्मा, रमा शर्मा, शामिली शर्मा, कंचन शर्मा, चंचला शर्मा, त्रिश्ला देवी व अन्य महिलाएं मौजूद थीं।
