चंडीगढ़ः पंजाब सरकार द्वारा पंजाब की पंचायतों को भंग करने के बाद अब पंचायतों को दिए जाने वाले फंड को रोक दिया गया है। पंजाब सरकार द्वारा पत्र जारी किया गया है। जिसमें कहा गया है कि पंचायतों के वेतन को छोड़कर सभी फंड रोक दिए गए हैं। पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद अब सरपंचों के पास गांवों के विकास के लिए फंड नहीं रहेगा। सभी विभागों और डीसी को पत्र जारी कर दिया गया है। यानी अब तत्काल प्रभाव से खजाना विभाग में फंड पर रोक लग गई है।

बता देंकि बीते दिन ही पंजाब में पंचायतें समय से पूर्व भंग करने के निर्णय पर पंजाब सरकार ने यू टर्न ले लिया था। इस निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि अब यह निर्णय वापस लेने का फैसला लिया गया था। इससे पहले पंचायतों का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इन्हें भंग करने पर हाईकोर्ट ने मंगलवार को कड़ा रुख अपनाते हुए पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने पूछा था कि आखिर किस अधिकार से पंचायतें भंग करने का निर्णय लिया गया। सरकार लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों से उनका अधिकार बिना किसी कारण कैसे वापस ले सकती है। पंचायतों के फंड पर लगाई रोक पर हाईकोर्ट ने पूछा था कि ऐसी स्थिति में बाढ़ राहत के लिए केंद्र से आए फंड का इस्तेमाल कैसे किया जा सकेगा।
पंजाब में तय समय से पहले पंचायतें भंग करने के मामले में शिरोमणि अकाली दल के नेता गुरजीत सिंह तलवंडी ने जनहित याचिका दाखिल कर इस फैसले को चुनौती दी थी। याचिका में हाईकोर्ट को बताया गया कि पंजाब सरकार ने 10 अगस्त को एक अधिसूचना जारी कर राज्य की सभी ग्राम पंचायतों को भंग कर दिया था। याची ने कहा कि यह अधिसूचना अवैध, मनमानी और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। ग्राम पंचायतें भंग कर निदेशक, ग्रामीण विकास और पंचायत-सह-विशेष सचिव को सभी अधिकार व शक्तियों का प्रयोग करने के लिए प्रशासक नियुक्त करने के लिए अधिकृत किया गया। किसी भी समय चुनाव की घोषणा करने की शक्ति और पंचायतों को भंग करने का मतलब यह नहीं हो सकता कि संविधान की ओर से निर्धारित कार्यकाल को संबंधित प्राधिकारी की इच्छानुसार कम किया जा सकता है।
पंजाब सरकार ने कहा कि यह निर्णय जनहित को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। हाईकोर्ट ने इस पर पंजाब सरकार से पूछा कि क्या कोई सर्वे करने के बाद यह निर्णय लिया गया था और आखिर इस निर्णय से क्या जनहित जुड़ा है। इसका संतोषजनक जवाब न मिलने पर हाईकोर्ट ने कहा कि कैसे खुद के नियम बनाकर सरकार इस प्रकार का फैसला ले सकती है और चयनित प्रतिनिधियों से आखिर किस अधिकार के तहत शक्तियां वापस लेने का निर्णय लिया गया। सरकार के पास यह अधिकार ही नहीं है कि समय से पहले ही बिना किसी आधार के राज्य की सभी पंचायतें भंग कर दे। हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद पंजाब सरकार ने इस याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए मोहलत मांगी थी। सरकार के इस फैसले के बाद पंचायत विभाग को भंग करने के मामले में बीते दिन देर शाम को 2 वरिष्ठ आई.ए.एस. अफसरों पर गाज गिरी। पंजाब ने बड़ी कार्रवाई करते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आज के फैसले के बाद पंचायत विभाग के प्रधान सचिव धीरेंद्र तिवारी और ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग के निदेशक गुरप्रीत सिंह खैहरा को निलंबित कर दिया गया।