सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमएम शांतनागौदार की बेंच ने कहा कि भले ही महिला अब दो दशकों तक स्कूल में काम करने के बाद वाइस-प्रिंसिपल बन गई हों, लेकिन उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिल सकता। बेंच ने कहा कि महिला का जन्म उच्च जाति में हुआ है, ऐसे में शादी भले ही उन्होंने एससी जाति में किया हो उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिल सकता।
कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई भी संदेह की बात नहीं है कि जाति का निर्धारण जन्म से होता है और शादी करके जाति में बदलाव नहीं होता है, भले ही शादी अनुसूचित जाति के व्यक्ति से हुई हो। इस मामले में महिला का जन्म अग्रवाल परिवार में हुआ, जो सामान्य वर्ग में आता है। ऐसे में महिला के एससी वर्ग में शादी करने से उसकी जाति नहीं बदल सकती। ऐसी स्थिति में महिला को एससी सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता है।
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जिस महिला को लेकर यह सुनवाई हुई उन्हें साल 1991 में बुलंदशहर के जिलाधिकारी ने एससी जाति का प्रमाणपत्र जारी किया था। महिला ने अपनी अकादमिक योग्यता और एससी सर्टिफिकेट के आधार पर 1993 में पंजाब के पठानकोट जिले में स्थित केंद्रीय विद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षिका के तौर पर नियुक्ति प्राप्त की। महिला ने नौकरी के दौरान ही एम.ऐड भी कर लिया।
हालांकि अब महिला की नियुक्ति के दो दशक बाद इसको लेकर शिकायत दर्ज कराई गई है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने आरक्षण का फायदा गलत तरीके से लिया है। इस मामले में जांच के बाद अधिकारियों ने महिला का सर्टिफिकेट खारिज कर दिया। वहीं केंद्रीय विद्यालय ने भी 2015 में महिला को नौकरी से टर्मिनेट कर दिया। महिला ने केंद्रीय विद्यालय के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, हालांकि कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।